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गुरुवार, 28 जून 2012

ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर गम दिए - Zindagi Ne Zindagi Bhar Gam Diye (The Train, Mithoon)



Movie/Album: द ट्रेन (2007)
Music By: मिथुन शर्मा
Lyrics By: सईद कादरी
Performed By: मिथुन शर्मा

ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर गम दिए
जितने भी मौसम दिए सब नम दिए

जब तड़पता है कभी अपना कोई
खून के आंसू रुला दे बेबसी
जी के फिर करना क्या मुझको ऐसी ज़िन्दगी
जिसने ज़ख्मों को नहीं मरहम दिए
ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर...

अपने भी पेश आये हमसे अजनबी
वक़्त की साजिश कोई समझा नहीं
बेइरादा कुछ खताएं हमसे हो गयी
राह में पत्थर मेरी हरदम दिए
ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर...

इक मुकम्मल कश्मकश है ज़िन्दगी
उसने हमसे की कभी ना दोस्ती
जब मिली मुझको आंसू के वो तोहफे दे गयी
हँस सकें हम ऐसे मौके कम दिए
ज़िन्दगी ने ज़िन्दगी भर...

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सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

गुलाबी आँखें जो तेरी देखी - Gulabi Aankhein Jo Teri Dekhi (Md.Rafi)



Movie/Album: द ट्रेन (1970)
Music By: आर.डी.बर्मन
Lyrics By: आनंद बक्षी
Performed By: मो.रफ़ी

गुलाबी आँखें, जो तेरी देखी, शराबी ये दिल हो गया
सम्भालो मुझको, ओ मेरे यारों, सम्भलना मुश्किल हो गया

दिल में मेरे, ख़्वाब तेरे, तस्वीरें जैसे हों दीवार पे
तुझपे फ़िदा, मैं क्यूँ हुआ, आता है गुस्सा मुझे प्यार पे
मैं लुट गया, मान के दिल का कहा
मैं कहीं का ना रहा, क्या करूँ मैं दिलरुबा
हुआ ये जादू तेरी आँखों का, ये मेरा क़ातिल हो गया
गुलाबी आँखें जो तेरी देखी...

मैंने सदा, चाहा यही, दामन बचा लूं हसीनों से मैं
तेरी क़सम, ख़्वाबों में भी, बचता फिरा नाज़नीनों से मैं
तौबा मगर, मिल गई तुझसे नज़र
मिल गया दर्द-ए-जिगर, सुन ज़रा ओ बेख़बर
ज़रा सा हँस के, जो देखा तूने मैं तेरा बिस्मिल हो गया
गुलाबी आँखें जो तेरी देखी...

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बुधवार, 6 अप्रैल 2011

बीते लम्हें - Beete Lamhein (K.K.)



Movie/Album : द ट्रेन (2007)
Music By : मिथुन शर्मा
Lyrics By : सईद कादरी
Performed By : के.के.

दर्द में भी ये लब मुस्कुरा जाते हैं
बीते लम्हें हमें जब भी याद आते हैं

चन्द लम्हात के वास्ते ही सही
मुस्कुरा कर मिली थी मुझे ज़िन्दगी
तेरी आगोश में दिन थे मेरे कटे
तेरी बाहों में थी मेरी रातें कटीं
आज भी जब वो पल मुझको याद आते हैं
दिल से सारे गमों को भुला जाते हैं
दर्द में...

किस कदर तेज़ रफ़्तार थी ज़िन्दगी
कहकहे हर तरफ़ थी खुशी ही खुशी
मैंने जिस दिन कही प्यार की बात थी
रुक गई थी अचानक वो बहती नदी
आज भी जब वो दिन मुझको याद आते हैं
गुज़रे लम्हें ज़हन में उभर आते हैं
दर्द में...

मेरे कांधे पे सिर को झुकाना तेरा
मेरे सीने में खुद को छुपाना तेरा
आके मेरी पनाहों में शाम-ओ-सहर
कांच की तरह वो टूट जाना तेरा
आज भी जब वो मन्ज़र नज़र आते हैं
दिल की विरानियों को मिटा जाते हैं
दर्द में...

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